महाराणा प्रताप के पिता जिसने बनवाया था ये खूबसूरत शहर।

 


राणा उदय सिंह के पुत्र महाराणाप्रताप थे। राणा उदय सिंह द्वितीय थे। 

राणा उदय सिंह ने उदयपुर की स्थापना की थी। 

राणा उदय सिंह का जन्मदिन August 4,1522 थे।

राणा उदय सिंह की मृत्यु February 28 1572 में हुई थीं।

राणा उदय सिंह महाराणा सांगा के बटे थे रानी कर्णावती के बेटे जो बुंदी के महाराज की बेटी थी।

1536 में बनबीर जो राणा सांगा के भाई का बेटा था उसने विक्रमादित्य को मार दिया।

बनवीर राणा उदय सिंहको मार ने गया पन्नाताय अपने बेटे चंदन को सुलाया और चंदन की जगह पे उद्देसिंह को सुलाया बनबीर ने चंदन को मार दिया पन्नाताई ने अपने बेटे का बलिदान दिया। 

पन्नाताई आशा शाह देहापुरा के वहां जाती हैं कुंभलगढ़ में राणा उदयसिंह को सौप देती हैं में इनकी सुरक्षा नहीं कर पाऊंगी आप रखिए इन्हें मुझे मिलने की कोशिश मत करना वो बुंदी चली जाती हैं।

महाराणा उदयसिंह की 15 पत्नियां थीं जिनके 25 बेटे थे।

बलबीर सिंह के साथ लड़ाई होती है और बलबीर की हत्या कर दी जाती हैं।

महाराणा उदयसिंह की पहली पत्नी जयवन्तबाय के पुत्र महाराणाप्रताप सिंह थे महाराणा उदयसिंह की दूसरी पत्नी सज्जाबाय सोलंकी के तीन बेटे थे शक्तिशीह सागरशीह अने विक्रमदेव उनकी राणा उदयसिंह की तीसरी पत्नी धीरबाय जो राणा जी की पसनदीदार पत्नी थीं जिनके एक पुत थे जगमाल सिंह और दो बेटियां थीं एक और चांदकवर और दूसरी मानकवर ये दो बेटियां थीं उदयसिंह जगमाल सिंह को राजा बनाना चाहते थे।

1544 में शेर शाह शूरी मारवाड़ में आक्रमण किया फिर उसने कुंभलगढ़ और चितौड़गढ़ में आक्रमण करने की सोची राणा उदयसिंह ने युद्ध लड़े बिना ही हार मान ली और शेर साह शूरी से हार मान ली।

1559 में राणा उदयसिंह ने उदयपुर की स्थापना की और अपनी राजधानी उदयपुर को बनाई बाद में उन्हें गोगुंदा को भी अपनी राजधानी बनाई है। राणा उदयसिंह ने उदयपुर में कही जिले बनाई।

1557 में राणा उदयसिंह हरमाड़ा के युद्ध में मालदेव के राठौड़ो के द्वारा हरा दिए जाते हैं।

1562 में बाज बहादुर गुजरात का और मालवा का सुरी होता है अक़बर जब उसे हारते हैं तो वो भाग के मेवाड़ आता है और उदयसिंह उसे शरण देते है 

अक़बर को राज्य का विस्तार करना था और उसे गुजरात जितना था गुजरात के रास्ते में आता है मेवाड़ और मेवाड़ के रास्ते में आता है गुजरात कही सारे कारणों के चलते मेवाड़ को जितना चाहता था मेवाड़ के शासकों जो कभी मुग़ल का आधिपत्य स्वीकारनेको तैयार नहीं थे।

1567 में अक़बर धौलपुर वाले क्षेत्रसे अकबर की सेना आक्रमण करने आ रही थी 1567 में फिर एक बैठक हुई जिसमें तय किया गया कि हम आत्मसमर्पण तो नहीं करे गे ये सभी सामंतों और सभी योद्धा वो ने कहा कि राणा उदयसिंह को की आपा अपने परिवार को लेकर पहाड़ियों में चले जाए आपको अगर कुछ हो गया तो राणा उदयसिंह पहले नहीं माने पर सबके कहने के बाद राणाजी पहाड़ों में चले गए।

राणा उदयसिंह तब चितौड़गढ़ को जयमाल मेवाडिया और पत्ता सिसोदिया को सोप के चले गए।

23 ऑक्टोंबर 1567 में अकबर ने आ गया चार महीने तक बाहर बैठा रहा अकबर चितौड़गढ़ को जीत लेना चाहता था पर वो इतना आसान नहीं था चितौड़गढ़ कि दिवाले इतनी ऊंची और मजबूत थी अकबर ने उसकी सेना ने सुरंग बनाना चालु कर दिया अकबर और उसकी सेना दिन को सुरंग बनती थी और जयमाल और पत्ता सिसोदिया उस सुरंग को रात को मिटादेते थे जो दीवार अकबर और उसकी सेना तोड़ देती थीं राजपूत योद्धा रात को उस दीवार को फिर से वापिस निर्माण कर देते थे चार महीने तक ये चला 2 महीने तक तो उन्हें दिवाल तक पहुंचने भी नहीं दिया तो 2 महीने तक दिवाल तोड़ नहीं पाए 23 फेब्रुअरी 1568 को युद्व होता है जिसमे अकबर जीत जाता है।

राणा उदयसिंह चितौड़गढ़ छोड़ के चले जा ते हे वो गोगुंदा में 1572 उनकी मृत्यु हो जाती हैं। उनकी छत्री गोगुंदा में है। 




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