पद्मावती का जौहर: आत्मसम्मान की ज्वाला में बलिदान की अमर कहानी। “चित्तौड़ का जौहर: जब आत्मसम्मान बना अग्निकुं।
भारत के इतिहास में अनेक वीरांगनाओं की गाथाएं दर्ज हैं जिन्होंने अपने आत्म-सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अद्भुत साहस का परिचय दिया। ऐसी ही एक वीरांगना थीं रानी पद्मावती, जिनका नाम इतिहास में स्वाभिमान, त्याग और वीरता का प्रतीक बन चुका है। चित्तौड़ की रानी पद्मावती ने अन्य हजारों रानियों और महिलाओं के साथ अलाउद्दीन खिलजी की सेना से हार मानने के बजाय जौहर किया — एक ऐसा सामूहिक बलिदान, जिसमें अपनी इज्जत और संस्कृति की रक्षा के लिए जीवन का त्याग कर दिया जाता है। इसी कारण से हमारे देश में उन्हें पूजा जाता हैं और एक सम्मान से याद किया जाता है। पद्मिनी रानी ने मरना स्वीकार किया पर दुश्मन को सोपा नहीं इसी लिए उन्हें महारानी पद्मनी भी कहा जाता है।
रानी पद्मावती का परिचय
रानी पद्मावती, जिन्हें पद्मिनी भी कहा जाता है, सिंहल (आधुनिक श्रीलंका) की राजकुमारी थीं। उनकी सुंदरता की कहानियां दूर-दूर तक प्रसिद्ध थीं। मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने उनसे विवाह किया और वे चित्तौड़ की रानी बनीं। रानी पद्मावती न केवल अत्यंत रूपवती थीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, नारी सम्मान और वीरता की प्रतीक भी थीं। रानी पद्मनी गुनियल और एक बहुत ही खूबसूरत परी जैसी महारानी थीं जिनकी खूबसूरती की बात पुरे भारतवर्ष में होती थी।
अलाउद्दीन खिलजी की दृष्टि
दिल्ली सल्तनत का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी अपनी सत्ता विस्तार की महत्वाकांक्षा के लिए कुख्यात था। जब उसे रानी पद्मावती की सुंदरता के बारे में जानकारी मिली, तो वह उस पर मोहित हो गया और किसी भी कीमत पर पद्मावती को पाने के लिए आतुर हो उठा। इतिहास में वर्णित है कि राघव चेतन नामक एक दरबारी ने खिलजी को रानी की सुंदरता के बारे में बताया, और उसके बाद ही खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई का निर्णय लिया।
चित्तौड़ पर हमला
सन 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की। उसने राजा रतन सिंह से छलपूर्वक मिलने का नाटक रचा और जब राजा रतन सिंह ने शिष्टाचारवश उन्हें बुलाया, तब उसने उन्हें बंदी बना लिया। इसके बदले में रानी पद्मावती को सौंपने की मांग की गई। यह प्रस्ताव न केवल अपमानजनक था, बल्कि पूरे मेवाड़ के आत्मसम्मान पर चोट थी।
युद्ध की तैयारी और आत्मसम्मान की लड़ाई
चित्तौड़ के वीरों और योद्धाओं ने यह तय किया कि वे किसी भी कीमत पर रानी पद्मावती को खिलजी के हाथों में नहीं जाने देंगे। युद्ध की घोषणा हुई। एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें चित्तौड़ के अनेक वीर योद्धा शहीद हो गए। यह पहले से तय था कि यदि विजय की संभावना क्षीण होगी, तो अंत में जौहर किया जाएगा।
जौहर क्या है?
जौहर एक प्राचीन राजपूत प्रथा थी, जिसमें शत्रु द्वारा पराजय की स्थिति में रानियां और स्त्रियां अपनी इज्जत और आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अग्नि कुंड में कूदकर आत्मदाह करती थीं। यह नारी शक्ति की चरम अभिव्यक्ति मानी जाती है, जिसमें बलिदान, साहस और स्वाभिमान की अद्वितीय मिसाल दिखाई देती है।
रानी पद्मावती का जौहर
जब यह स्पष्ट हो गया कि चित्तौड़ की सेना खिलजी की विशाल सेना के सामने अधिक समय तक नहीं टिक पाएगी, तब रानी पद्मावती ने अन्य रानियों और महिलाओं के साथ मिलकर जौहर करने का निर्णय लिया। कहते हैं कि उस रात चित्तौड़ के किले में लगभग 16,000 महिलाओं ने अग्नि की ज्वाला में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दी।
रानी पद्मावती ने अपने आत्म-सम्मान और देश की मर्यादा की रक्षा के लिए जो निर्णय लिया, वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। यह केवल एक बलिदान नहीं था, बल्कि एक चेतावनी थी हर उस अत्याचारी के लिए जो नारी को केवल भोग की वस्तु समझता है।
जौहर स्थल: चित्तौड़गढ़ का इतिहास
आज भी राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला, जो यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, इस महान जौहर की गवाही देता है। यहाँ जौहर कुंड है, जहाँ पद्मावती और अन्य रानियों ने अपनी आहुति दी थी। हर साल हज़ारों लोग इस पवित्र स्थान पर आते हैं और उन वीरांगनाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
इतिहासकारों की दृष्टि
इतिहासकारों में रानी पद्मावती की कथा को लेकर मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि यह कथा मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित "पद्मावत" नामक सूफी काव्य पर आधारित है, जो 1540 में लिखा गया था। कई इतिहासकार इसे साहित्यिक कल्पना मानते हैं, जबकि राजपूत इतिहास और परंपरा में यह एक वास्तविक घटना के रूप में स्थापित है। लोककथाओं, लोकगीतों और राजस्थान की सांस्कृतिक स्मृति में रानी पद्मावती का नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है।
पद्मावती की कथा का सांस्कृतिक प्रभाव
रानी पद्मावती की जौहर की कथा भारतीय लोककला, साहित्य, रंगमंच और सिनेमा में व्यापक रूप से चित्रित की गई है। हाल ही में 2018 में संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्म "पद्मावत" ने इस कहानी को एक बार फिर मुख्यधारा में लाया। हालांकि फिल्म को लेकर विवाद भी हुए, लेकिन इसने एक बार फिर लोगों के मन में पद्मावती के बलिदान की छवि को उजागर किया।
नारी शक्ति और स्वाभिमान की प्रतीक
रानी पद्मावती का बलिदान आज भी भारत की नारी शक्ति के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने यह दिखा दिया कि एक नारी अपने सम्मान और अस्मिता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। उनका जौहर यह सिद्ध करता है कि स्त्री केवल कोमल नहीं होती, वह समय आने पर अग्नि समान बन जाती है।
रानी पद्मावती और उनके साथ जौहर करने वाली 16,000 से अधिक रानियों व महिलाओं का बलिदान केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आत्म-सम्मान और नारी गरिमा की अमर गाथा है। जौहर ने दिखा दिया कि मृत्यु भी स्वीकार है, पर अपमान नहीं। रानी पद्मावती का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है और हमेशा रहेगा। उनके बलिदान की कहानी आज भी हर भारतीय के हृदय में गर्व
और श्रद्धा का भाव उत्पन्न करती है।
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