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Showing posts from June, 2025

"झांसी की रानी लक्ष्मीबाई: भारत की वीरांगना"। किसने मरदानी नाम दिया।

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  प्रस्तावना भारतीय इतिहास की जब भी बात होती है, देशभक्ति और साहस की मूर्ति रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले लिया जाता है। रानी लक्ष्मीबाई ने न सिर्फ अपने राज्य झांसी की रक्षा की, बल्कि भारत की आज़ादी के प्रथम संग्राम 1857 में भी अग्रणी भूमिका निभाई। उनका जीवन नारी सशक्तिकरण, स्वाभिमान और अदम्य साहस का प्रतीक है। प्रारंभिक जीवन रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को काशी (वाराणसी) में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था और प्यार से उन्हें 'मनु' कहा जाता था। उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथीबाई था। मनु का पालन-पोषण एक ब्राह्मण परिवार में हुआ, लेकिन उनका मन पारंपरिक लड़कियों की तरह घर के कामों में नहीं लगता था। उन्होंने बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और युद्ध-कला में विशेष रुचि दिखाई। झाँसी की रानी का यह साहसी और स्वाभिमानी स्वभाव बचपन से ही नजर आता था। झांसी की रानी बनना सन् 1842 में मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर से हुआ और उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा। विवाह के बाद वह झांसी की रानी बनीं। रानी और राजा को एक पुत्र रत्न प्राप्त नहीं हुआ, इसल...

पद्मावती का जौहर: आत्मसम्मान की ज्वाला में बलिदान की अमर कहानी। “चित्तौड़ का जौहर: जब आत्मसम्मान बना अग्निकुं।

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  भारत के इतिहास में अनेक वीरांगनाओं की गाथाएं दर्ज हैं जिन्होंने अपने आत्म-सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अद्भुत साहस का परिचय दिया। ऐसी ही एक वीरांगना थीं रानी पद्मावती, जिनका नाम इतिहास में स्वाभिमान, त्याग और वीरता का प्रतीक बन चुका है। चित्तौड़ की रानी पद्मावती ने अन्य हजारों रानियों और महिलाओं के साथ अलाउद्दीन खिलजी की सेना से हार मानने के बजाय जौहर किया — एक ऐसा सामूहिक बलिदान, जिसमें अपनी इज्जत और संस्कृति की रक्षा के लिए जीवन का त्याग कर दिया जाता है। इसी कारण से हमारे देश में उन्हें पूजा जाता हैं और एक सम्मान से याद किया जाता है। पद्मिनी रानी ने मरना स्वीकार किया पर दुश्मन को सोपा नहीं इसी लिए उन्हें महारानी पद्मनी भी कहा जाता है। रानी पद्मावती का परिचय रानी पद्मावती, जिन्हें पद्मिनी भी कहा जाता है, सिंहल (आधुनिक श्रीलंका) की राजकुमारी थीं। उनकी सुंदरता की कहानियां दूर-दूर तक प्रसिद्ध थीं। मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने उनसे विवाह किया और वे चित्तौड़ की रानी बनीं। रानी पद्मावती न केवल अत्यंत रूपवती थीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, नारी सम्मान और वीरता की प्रतीक भी थीं। रानी पद्मन...

अलाउद्दीन खिलजी की बेटी और विक्रमदेव चौहान की कहानी।

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  भारतीय इतिहास में कई ऐसी कहानी दर्ज हैं जो न केवल प्रेम और राजनीति को दर्शाती हैं, बल्कि उन शूरवीरों की गौरवगाथा भी सुनाती हैं जिन्होंने अपने स्वाभिमान और संस्कृति की रक्षा के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया। ऐसी ही एक कहानी है – दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बेटी और राजपूत योद्धा विक्रमदेव चौहान के बीच के प्रस्ताव की, जिसे विक्रमदेव ने ठुकरा दिया था। यह प्रसंग ना केवल एक प्रेम प्रस्ताव की अस्वीकृति है, बल्कि एक संस्कृतिक टकराव, धर्म और मर्यादा की रक्षा का प्रतीक भी बन गया। आइए इस ऐतिहासिक घटना को विस्तार से समझते हैं। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का सबसे शक्तिशाली सुल्तान था। उसने 1296 से 1316 तक शासन किया और अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत तक किया। वह अपने क्रूर और आक्रामक शासन, आर्थिक सुधारों और युद्ध नीति के लिए जाना जाता है। लेकिन अलाउद्दीन खिलजी सिर्फ युद्धों में ही नहीं, बल्कि अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं और अभिमान के लिए भी प्रसिद्ध था। उसका नाम पद्मावती के प्रति उसके एकतरफा प्रेम के लिए भी इतिहास में दर्ज है। ठीक उसी तरह, उसकी बेटी भी एक राजपूत ...

पृथ्वीराज चौहान के बाद रानी संयोगिता के साथ क्या हुआ था।

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  भारत के मध्यकालीन इतिहास में वीरता, प्रेम और बलिदान की अनेक कहानियां मिलती हैं, जिनमें पृथ्वीराज चौहान और रानी संयोगिता की गाथा अत्यंत प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज चौहान की वीरता जितनी चर्चित है, उतनी ही रोमांचक है उनकी प्रेम कहानी रानी संयोगिता के साथ। लेकिन इतिहास में एक प्रश्न अक्सर अनुत्तरित रहता है — "पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद रानी संयोगिता का क्या हुआ?" इस ब्लॉग में हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे। संयोगिता और पृथ्वीराज का प्रेम संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थीं। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का प्रेम लोककथाओं और महाकाव्य 'पृथ्वीराज रासो' में प्रसिद्ध है। राजा जयचंद ने पृथ्वीराज को अपने दुश्मनों की सूची में रखा था, और जब उन्होंने संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया, तो पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया। अपमानित करने के लिए उन्होंने पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के रूप में लगवाई। लेकिन संयोगिता पहले से ही पृथ्वीराज से प्रेम करती थीं। स्वयंवर के दिन, उन्होंने पृथ्वीराज की मूर्ति को वरमाला पहना दी, और उसी समय पृथ्वीराज उन्हें अपहरण करके दिल्ली ले आए। यह...