पृथ्वीराज चौहान के बाद रानी संयोगिता के साथ क्या हुआ था।
भारत के मध्यकालीन इतिहास में वीरता, प्रेम और बलिदान की अनेक कहानियां मिलती हैं, जिनमें पृथ्वीराज चौहान और रानी संयोगिता की गाथा अत्यंत प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज चौहान की वीरता जितनी चर्चित है, उतनी ही रोमांचक है उनकी प्रेम कहानी रानी संयोगिता के साथ। लेकिन इतिहास में एक प्रश्न अक्सर अनुत्तरित रहता है — "पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद रानी संयोगिता का क्या हुआ?" इस ब्लॉग में हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
संयोगिता और पृथ्वीराज का प्रेम
संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थीं। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का प्रेम लोककथाओं और महाकाव्य 'पृथ्वीराज रासो' में प्रसिद्ध है। राजा जयचंद ने पृथ्वीराज को अपने दुश्मनों की सूची में रखा था, और जब उन्होंने संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया, तो पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया। अपमानित करने के लिए उन्होंने पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के रूप में लगवाई। लेकिन संयोगिता पहले से ही पृथ्वीराज से प्रेम करती थीं। स्वयंवर के दिन, उन्होंने पृथ्वीराज की मूर्ति को वरमाला पहना दी, और उसी समय पृथ्वीराज उन्हें अपहरण करके दिल्ली ले आए। यह प्रेम की एक ऐतिहासिक मिसाल बन गई।
तराइन का युद्ध और पृथ्वीराज की मृत्यु
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच दो प्रमुख युद्ध हुए — पहला तराइन का युद्ध (1191 ई.) और दूसरा तराइन का युद्ध (1192 ई.)। पहले युद्ध में पृथ्वीराज ने गौरी को पराजित किया, लेकिन गौरी ने पराजय का बदला लेने के लिए पुनः आक्रमण किया। दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुए और उन्हें बंदी बना लिया गया।
इतिहासकारों के अनुसार, मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को अफगानिस्तान ले जाकर अंधा कर दिया और बाद में उनकी हत्या कर दी। कुछ काव्यात्मक विवरणों में यह भी कहा गया है कि पृथ्वीराज ने अंतिम समय में चंदबरदाई की मदद से गौरी की हत्या कर दी थी ।
पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद संयोगिता का जीवन
अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न — पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद रानी संयोगिता का क्या हुआ?
इस विषय पर ऐतिहासिक विवरण सीमित हैं, और अधिकांश जानकारी जनश्रुति, काव्य, और किवदंतियों पर आधारित है। फिर भी, विभिन्न स्रोतों से कुछ संभावित घटनाओं का विवरण सामने आता है:
1. जौहर की परंपरा और संयोगिता
कई लोककथाओं में उल्लेख है कि पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद रानी संयोगिता ने जौहर कर लिया। जौहर एक ऐसी प्रथा थी जिसमें सम्मान की रक्षा के लिए स्तिथि शत्रु के हाथों अपमानित होने की अपेक्षा अग्नि में प्रवेश कर आत्मदाह कर लेती थीं।
संयोगिता, जो राजपूत कुल की वीरांगना थीं, उन्होंने भी इस परंपरा का पालन करते हुए दिल्ली या अजमेर में अपने महल में अग्निकुंड में प्रवेश कर लिया। इस कथन को प्रमाणित करने के लिए कोई ठोस ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है, परंतु यह राजपूतानी परंपरा और उनके स्वाभिमान के अनुरूप माना जाता है।
2. कुछ इतिहासकारों की वैकल्पिक राय
कुछ इतिहासकारों का मत है कि संयोगिता को दिल्ली के पतन के बाद मोहम्मद गौरी के सेनापति ने बंदी बना लिया था और उन्हें गुलाम बना दिया गया। लेकिन इस बात का कोई प्रामाणिक प्रमाण नहीं है। यह विचार केवल अनुमान या तर्क पर आधारित है, न कि किसी दस्तावेजी स्रोत पर।
3. काव्य और लोकगाथाओं में चित्रण
‘पृथ्वीराज रासो’ में संयोगिता के चरित्र को एक वीरांगना, पतिव्रता और स्वाभिमानी स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है। यह ग्रंथ स्वयं चंदबरदाई द्वारा रचित माना जाता है (हालांकि इसका पूरा भाग कालांतर में जोड़ा गया)। इसमें बताया गया है कि पृथ्वीराज की मृत्यु का समाचार सुनकर संयोगिता ने तुरंत जौहर कर लिया।
4. संयोगिता की विरासत और प्रतीकात्मकता
संयोगिता आज केवल एक ऐतिहासिक पात्र ही नहीं बल्कि राजपूती स्त्री-गौरव, प्रेम और बलिदान की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। उन्होंने प्रेम के लिए पिता से विद्रोह किया, अपहरण के बाद भी पूरी निष्ठा से पृथ्वीराज के साथ जीवन बिताया और अंततः उनकी मृत्यु के बाद अपनी गरिमा की रक्षा करते हुए अपना जीवन त्याग दिया।
क्या हुआ था वास्तव में?
हालांकि पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की कहानी में कई बातें ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट नहीं हैं, फिर भी यह सत्य है कि यह कथा भारतीय जनमानस में गहराई से जुड़ी हुई है। इतिहास और लोकगाथाओं का मिलजुला स्वरूप हमें यह बताता है कि संयोगिता ने पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद जौहर किया था, जो कि उस काल की वीरांगनाओं का स्वाभिमानी उत्तर था।
कुछ इतिहासकारों द्वारा इस कथा को काल्पनिक या अतिशयोक्तिपूर्ण माना गया है, परंतु यह भी सत्य है कि लोककथाएँ उस युग की सांस्कृतिक भावना को दर्शाती हैं। राजपूताने की स्त्रियाँ अपने आत्मसम्मान और शौर्य के लिए जानी जाती थीं, और संयोगिता उनमें से एक महान उदाहरण हैं।
उपसंहार
संयोगिता की कहानी केवल एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि उस युग की स्त्री की मानसिकता, शक्ति, त्याग और सम्मान की प्रतीक है। पृथ्वीराज चौहान के बाद संयोगिता ने जिस तरह से अपने जीवन का अंत किया, वह आज भी भारतीय इतिहास और साहित्य में एक अमर गाथा के रूप में दर्ज है।
उनका जीवन और मृत्यु हमें यह सिखाते हैं कि प्रेम, निष्ठा और स्वाभिमान के लिए किया गया बलिदान सदियों तक याद रखा जाता है।
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