गणेश चतुर्थी : आस्था, संस्कृति और उत्सव का महापर्व। कैसे गणेश चतुर्थी मानना चालू किया।


भूमिका

 भारत में सभी धर्म के लोग रहते हैं उनमें हिन्दू सबसे ज्यादा रहते हैं। भारत को हिंदुस्तान कहा जाता है। भारत त्यौहारों की भूमि कहा जाता है। यहां पर प्रत्येक पर्व और उत्साह किसी न किसी धर्म और धार्मिक और सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व से जुड़ा हुआ है। इन्हीं में से एक है गणेश चतुर्थी जिसे विघ्नहर्ता, मँगलहर्ता और प्रथम पूज्य भगवान गणेश जन्मोत्सव के रूप मे मनाया जाता है। इसे सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। पूरा हिंदुस्तान इस पर्व को धूमधाम से मनाता है।

गणेश चतुर्थी का महत्व

गणेश चतुर्थी, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार इसी दिन माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र गणेश जी का जन्म हुआ था।गणपति को विघ्नहर्ता, संकटमोचक, सिद्धिदाता और बुद्धि-प्रदाता माना जाता है। हम अगर हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करते हैं तो पहले गणेश जी की पूजा करने की परंपरा है। हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी का पर्व विशेष महत्व रखता है।

भगवान गणेश की कथा

हम अगर हिन्दू धर्म के पुराणिक कथाओं और पुराणों के अनुसार माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर के उबटन से गणेश जी की रचना की। एक बार माता पार्वती स्नान करने जाती हैं तो गणेश जी को बाहर खड़ा करके जाती है। और बताती है कि जब तक में स्नान करके ना आवु तब तक किसी को भी अन्दर मत आने देना। तभी भगवान शिव वहां आए और गणेश जी ने उनको रोक दिया। शिवजी को बहुत ही ज्यादा क्रोध आया और त्रिशूल से गणेश जी का मस्तक काट दिया। जब माता पार्वती स्नान करके बाहर आई और यह दृश्य अत्यंत दुखी हुई। तब शिवजी ने गणेश जी को हाथी का मस्तक लगाया और उन्हें देवताओं में प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया।

गणेश चतुर्थी की पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों और पंडालों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं। फिर 10 दिनों तक गणपति की भव्य आराधना की जाती है।

व्रत और स्नान – इस दिन व्रती प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करता है।

मूर्ति स्थापना – भगवान गणेश की मिट्टी की प्रतिमा को स्वच्छ स्थान पर स्थापित किया जाता है।

आवाहन और पूजा – मंत्रोच्चारण और विधिवत पूजा करके गणपति का आवाहन किया जाता है।

नैवेद्य और प्रसाद – गणपति को मोदक, लड्डू, दूर्वा (तीन पत्तियों वाली घास), सिंदूर, फूल आदि अर्पित किए जाते हैं।

आरती और भजन – सुबह-शाम गणेश आरती और भजन गाकर वातावरण को भक्तिमय बना दिया जाता है।

गणेश चतुर्थी का सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष

गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि यह एक सामाजिक एकता और सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक भी है।19 मी शताब्दी में लोकमान्य तिलक ने इस पर्व को स्वतंत्र संग्राम मैं एक सामाजिक आंदोलन का रूप दिया। उन्होंने गणपति महाराज को सामाजिक महत्व दिया और पूरे देश में गणेश उत्सव की शुरुआत की जब अग्रेजों ने लोगों को मिलने से मना किया तो सब एकजुट हो सके।इस प्रकार यह पर्व भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण साबित हुआ।
   आज भी सार्वजनिक पंडालों में गणपति स्थापना होती है, जहाँ लोग जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर एकजुट होकर पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं। यह पर्व लोगों में भाईचारे और एकता की भावना जागृत करता है।

गणेश चतुर्थी और पर्यावरण

गणेश चतुर्थी का उत्सव भव्यता से मनाया जाता है। हम जब गणेश जी की पूजा करने के लिए उनकी मूर्ति लाए तो हमें अब ये ध्यान रखना चाहिए कि जब मूर्ति ले तब वो मिट्टी की बनी हुई हो। जो मूर्ति माटी की बनी होगी तो हम उसे जब विसर्जन करते हैं तब वो आसानी से पिंगल जाएगी। जब की प्लास्टर ऑफ पेरिस और रासायनिक रंगों से बनी प्रतिमा से बनी प्रतिमाओं नदियों और समुद्र में प्रदूषण फैलती है।साथ ही कई स्थानों पर कृत्रिम टैंकों में प्रतिमाओं का विसर्जन करके प्रकृति के संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है।

गणेश विसर्जन

गणेश चतुर्थी का उत्सव 10 दिनों तक चलता है। अभी बहुत सारे लोग 5 दिन तक गणेश पूजा करने के बाद विसर्जन करते हैं जब गणेश विसर्जन होता है इस दिन भक्त नाच गाकर, ढोल ताशे बजाकर बड़ी धूमधाम से गणपति बप्पा को विदा करते हैं। विसर्जन के समय भक्त नारे लगाते हैं।यह विदाई केवल प्रतिमाओं की होती है, क्योंकि गणपति बप्पा हमेशा भक्तों के हृदय में बसे रहते हैं।

गणेश चतुर्थी का वैश्विक स्वरूप

गणेश चतुर्थी अब केवल भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, दुबई, मॉरीशस और अन्य देशों में बसे भारतीय समुदाय भी इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस तरह यह पर्व भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिला रहा है।।।।।

गणपति जी के प्रिय भोग

गणेश जी को मीठा बहुत प्रिय है। उनमें भी मोदक को उनका सबसे प्रिय भोग माना जाता है। इसी कारण गणेश चतुर्थी के अवसर पर घर-घर में मोदक बनाए जाते हैं। इसके अलावा लड्डू, पूरनपुड़ी और नारियल से बने व्यंजन भी अर्पित किए जाते हैं।

आधुनिक युग में गणेश चतुर्थी

आज गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहा, बल्कि यह एक संस्कृति उत्सव का रूप ले चुका है। विभिन्न राज्यों में गणपति पंडाल सजावट और भव्यता में एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते हैं। कहीं थीम आधारित पंडाल बनाए जाते हैं तो कहीं सामाजिक संदेशों को सजावट के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

उपसंहार

गणेश चतुर्थी न केवल भगवान गणेश की आराधना का पर्व है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो लोगों को एकजुट करता है, समाज में सद्भाव फैलाता है और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितने भी विघ्न क्यों न आएं, श्रद्धा, विश्वास और एकता से उन्हें दूर किया जा सकता है।

गणेश चतुर्थी का महापर्व हर वर्ष हमें यही संदेश देता है –
“गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया।”


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