"राणा उदयसिंह: मेवाड़ के संघर्षशील राजा और महाराणा प्रताप के पिता"
राजस्थान हमेशा वीरों की भूमि रही हैं। मेवाड़ एक एसी भूमि रही है जहां हमेशा वीरों को जन्म दिया है। मेवाड़ सदियों से शौर्य, बलिदान और त्याग की धरती रही है। यहां पर जन्मा हर राजा ने अपनी जान की बाजी लगाकर मातृभूमि की रक्षा की हर किसी ने एसी वीरता दिखाई और अपनी वीरता का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि आज भी इतिहास के पन्ना में स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया गया है। इस गौरवमयी परंपरा में एक बहुत बड़ा नाम राणा उदयसिंह द्वितीय का है। राणा उदयसिंह शिरोमणि महाराणा प्रताप के पिता थे। राणा उदयसिंह ने अपने जीवन काल में बहुत संघर्ष किया था।लेकिन उनका योगदान मेवाड़ के इतिहास को नई दिशा देने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रारंभिक जीवन और जन्म
राणा उदयसिंह का जन्म 4 अगस्त 1522 में हुआ था।
राणा उदयसिंह जी के पिता का नाम राणा सांगा था । राणा सांगा एक महान योद्धा थे। वो मेवाड़ का गौरव थे। अपने समय गुजरात के सुलतानों और दिल्ली के बादशाह को हराया था।
राणा उदयसिंह जी की माता का नाम कर्णावती था।राणा उदयसिंह की माता रानी कर्णावती वही वीरांगना थीं जिन्होंने गुजरात के बहादुर शाह के आक्रमण के समय चित्तौड़ की स्त्रियों के साथ जौहर किया और ने प्राण न्यौछावर कर दिए। उस समय राणा उदयसिंह केवल एक छोटे बालक थे। उनका पालन-पोषण विश्वसनीय राजपूत सरदार पुरीयाजी चौहान और अशोक दास चावड़ा के संरक्षण में हुआ।
राणा उदयसिंह की जन्मभूमि मेवाड़ में चितौड़गढ़ है।
राणा उदयसिंह की 7 पत्नी थी और 24 संतान थी।
उदयसिंह को राणा की उपाधि मिली थी।
राणा उदयसिंह की राज्य मेवाड़ था।
राणा उदयसिंह ने अपनी राजधानी उदयपुर में बनाई थी।
राणा उदयसिंह का वंश सिसोदिया था।
राणा उदयसिंह जी का शासनकाल 1537- 1572 तक उदयसिंह ने राज किया था।
राणा उदयसिंह जी की मृत्यु 28 फेब्रुअरी 1572 में हुई थी।
चित्तौड़ की गद्दी पर बैठना
राणा सांगा के बाद उनके बेटे राणा विक्रमादित्य की उनके चाचा के बेटे बनबीर ने हत्या कर दी। जब वो उदयसिंह को मरने के लिए गया तब उदयसिंह सो रहा था। तभी पन्नताय ने अपने बेटे चंदन को सुलादिया बनबीर ने उदयसिंह समज के चंदन को मार दिया। पन्नाटाय ने अपने बेटे का बलिदान दिया और उदयसिंह को बचाया वो उन्हें कुंभलगढ़ लेकर चली गई आशा देवपुरा ने वहां सौंप फिर उन्होंने उदयसिंह को बड़ा किया। सभी सामंतों को पता चला कि उदयसिंह जिंदा है तो सब ने मिल कर उदयसिंह का साथ दिया उन्होंने मावली के युद्ध में बनबीर को हरा दिया। और 15 वर्ष की आयु में उदयसिंह राजा बने छोटी सी उम्र में बहुत संघर्ष किया।
चुनौतियों भरा शासनकाल
राणा उदयसिंह का शासनकाल मेवाड़ के लिए काफी संघर्ष मय रहा। राणा उदयसिंह के समय में चित्तौड़गढ़ पर कही आक्रमण हुवे और धीरे धीरे मेवाड़ कमजोर होता चला गया। कही बार गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह और मालवा के मालदेव ने भी कही आक्रमण किया।
गुजरात और मालवा के आक्रमण – गुजरात का सुल्तान बहादुर शाह और उसके बाद अन्य सुल्तानों ने मेवाड़ को कई बार घेरा।
मुगल खतरा – बाबर और हुमायूँ के बाद अकबर की शक्ति बढ़ती जा रही थी। अकबर के शासनकाल में चित्तौड़गढ़ पर गंभीर संकट आया।
राणा उदयसिंह के समयकाल में बाबर और हुमायूं के बाद अकबर की शक्ति बढ़ती जा रही थी। अकबर के शासनकाल में चित्तौड़गढ़ पर सबसे बड़ा संकट आया।
उदयपुर नगर की स्थापना
राणा उदयसिंह ने सबसे महत्वपूर्ण कार्य उदयपुर नगर की स्थापना कर के की थी उन्होंने अरावली की पहाड़ियों में पिचोला झील के किनारे 1559 में उदयपुर नगर एक खूबसूरत नगर बनवडाया था।
राणा उदयसिंह ने उदयपुर का चयन उन्होंने इस लिए किया था कि यह क्षेत्र बहुत ही प्राकृतिक और सुंदर था। उदयपुर के चारों तरफ़ पर्वतों और झीलों से घिरा हुआ है । एक ऐसा कुदरती जगह लगी राणा उदयसिंह को पर्वतों और झीलों बहुत पसंद आई इस लिए उदयसिंह ने वहां उदयपुर का निर्माण किया। यह चारों तरफ पर्वतों और झीलों से घिरा होने के कारण आक्रमणकारियों से बचने के लिए उपयुक्त था। बाद में यह मेवाड़ की राजधानी बना ओर आज भी अपनी झीलों और महलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
चित्तौड़ का संकट और अकबर का आक्रमण
राणा उदयसिंह के समयकाल में सबसे खराब समय तब आया जब अकबर ने चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया अकबर समग्र राजपुताने को अपने अधीन करना चाहता था। अकबर एक साम्राज्य वादी राजा था। अकबर ने चितौड़गढ़ की घेराबंदी कही महीनों तक चली। अकबर चित्तौड़ को नहीं जीत पा रहा था। अकबर कही दिनों तक बाहर गेरा डाल के बैठा रहा। तभी सामंतों से सलाह ली और अपने परिवार के साथ चितौड़ छोड़ कर उदयपुर चले जाते हैं। अकबर और कही दिनों तक घेराबंदी करता रहा।1568 में एक भयंकर युद्ध हुआ इस युद्ध में हजारों राजपूत योद्धा मारे गए और राजपुतानियो ने जौहर कर लिया।
पारिवारिक जीवन और संतान
राणा उदयसिंह की कई रानियां थीं और उनसे अनेक संतानें हुईं। इनमें सबसे प्रसिद्ध थे –
महाराणा प्रताप – जिन्होंने बाद में मेवाड़ को नया गौरव दिलाया और अकबर जैसी विशाल शक्ति के सामने स्वतंत्रता की अलख जगाई।
शक्तिसिंह – जिनकी वीरता और प्रताप से जुड़ी कथाएँ प्रसिद्ध हैं।
जगमाल– जिनका उल्लेख इतिहास में आता है।
महाराणा प्रताप राणा उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे और उनके बाद मेवाड़ की गद्दी पर बैठे।
राणा उदयसिंह का निधन
28 फरवरी 1572 को राणा उदयसिंह का निधन हुआ। उनका जीवन संघर्ष और संकटों से भरा रहा। उन्होंने अपने शासनकाल में कई हारें देखीं, किंतु उदयपुर जैसे सुरक्षित नगर की स्थापना करके उन्होंने मेवाड़ को भविष्य के लिए एक मजबूत आधार दिया।
उनके निधन के बाद उनका पुत्र महाराणा प्रताप गद्दी पर बैठा और मेवाड़ के गौरव को पुनः स्थापित किया।
राणा उदयसिंह का ऐतिहासिक महत्व
राणा उदयसिंह का योगदान उनके पुत्र महाराणा प्रताप जितना महान भले ही न माना जाता हो, लेकिन उनके कार्यों ने प्रताप के संघर्ष को संभव बनाया।
उदयपुर की स्थापना – जिसने मेवाड़ को नई राजधानी दी।
चित्तौड़ की रक्षा का प्रयास – यद्यपि वे सफल नहीं हो पाए, लेकिन उनकी रणनीति ने मेवाड़ को पूर्ण विनाश से बचाया।
प्रताप का संस्कार – उन्होंने अपने पुत्र महाराणा प्रताप को ऐसा संस्कार दिया कि प्रताप आज भी स्वतंत्रता और स्वाभिमान के प्रतीक माने जाते हैं।
निष्कर्ष
राणा उदयसिंह का जीवन यह दर्शाता है कि हर शासक के जीवन में परिस्थितियाँ अलग होती हैं। वे निरंतर संघर्षों में घिरे रहे, किंतु उन्होंने मेवाड़ को पूरी तरह समाप्त नहीं होने दिया। उदयपुर की स्थापना कर उन्होंने मेवाड़ को भविष्य की राह दिखाई।
उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने जिस पराक्रम और स्वाभिमान की गाथा लिखी, उसके पीछे राणा उदयसिंह की विरासत और त्याग की नींव छिपी हुई थी। इसलिए राणा उदयसिंह का नाम मेवाड़ के इतिहास में सदैव सम्मान के साथ लिया जाता है।
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