"पन्ना धाय : पुत्र बलिदान से मेवाड़ और राणा उदयसिंह की रक्षा करने वाली वीरांगना"

 


जब भी मेवाड़ के लिए बलिदान की बात आएगी तब मातृभूमि की रक्षक भारत के इतिहास में एक एसी वीरांगना थी जिनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित होता है पन्ना धाय। वो कोई रानी नहीं, राजकुमारी नहीं, की कोई सेनापति भी नहीं थी वो एक साधारण सी दासी थी। लेकिन उनका बलिदान इतना बड़ा था कि इतिहास के सबसे बड़े बलिदानों के श्रेणी में खड़ा कर दिया है। पन्ना धाय ने अपने बेटे का बलिदान दे कर मेवाड़ के वारिस को बचाया था।


पन्ना धाय का परिचय


पन्ना धाय मेवाड़ की रानी कर्णावती की एक विश्वसनीय दासी थी। उनका पूरा जीवन राज परिवार की सेवा में चला गया था। पन्ना धाय का एक बेटा था जिसका नाम चंदन था। चंदन राणा उदयसिंह की उम्र का ही था। पन्ना धाय ने अपने सुख दुःख से ऊपर मातृभूमि को रखा।


मेवाड़ की राजनीतिक परिस्थिति


जब मेवाड़ में राणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) के मरने के बाद मेवाड़ की गद्दी पर उनके बेटे विक्रमआदित्य बैठते है उनका सासन थोड़ा कमजोर होता है। और राज्य में उनके खिलाफ षड्यंत्रों होने लगे।

   इस षड़यंत्रों में सबसे बड़ा नाम बनबीर का था। बनबीर ने सिंहासन पाने के लिए एक बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा। बनबीर कुछ भी कर के मेवाड़ की गद्दी हासिल करना चाहता था। उसने राणा विक्रमादित्य कि हत्या कर दी और उनके बाद उसने छोटे राजकुमार उदयसिंह को मारना चाहा।

पन्ना धाय का त्याग


  बनबीर विक्रमादित्य को मारने के बाद एक रात बनबीर उद्यसिंह को मारने के लिए तलवार लेकर महल में आता है। जब बनबीर आ रहा था तब राजकुमार उदयसिंह अपने माता की दासी पन्ना धाय के पास सो रहे थे। पन्ना धाय को जब पता चला कि बनबीर कक्ष की तरफ बढ़ रहा है, तभी उन्होंने तुरंत ही निर्णय लिया। पन्ना धाय जानती थी कि अगर उदय सिंह मर गए तो मेवाड़ पर बनबीर का राज हो जाएगा। और भविष्य में कभी मेवाड़ में राणा सांगा का वंश आगे नहीं बढ़ेगा क्योंकि उदय सिंह राणा सांगा के आखिरी बेटे थे। उन्होंने अपने राजा को बचाने के लिए और अपनी मातृभूमि के लिए मेवाड़ की रक्षा के अपना हृदय- विदारक बलिदान दिया। पन्ना धाय ने उदय सिंह के जगह अपने बेटे चंदन को सुलाया और राजकुमार उदयसिंह को टोकरी में राजमहार से बाहर निकाल दिया। बनबीर जब कक्ष में आया तो उसने उदयसिंह समझ कर शिशु को तलवार से मार दिया। वह बच्चा और कोई नहीं बल्कि पन्ना धाय का बेटा चंदन था।


उदयसिंह का बचना

पन्ना धाय ने बड़े साहस, चतुराई और बलिदान देकर उदयसिंह को महल से बाहर निकाला और एक सुरक्षित जगह ले जाया गया। पहले उनको कुंभलगढ़ लेकर गए और वहां एक पाली नाम के एक सेवक ने अपनी देख रख में उदयसिंह को बड़ा किया गया और बड़ा होकर जब मेवाड़ के सामंतों को पता चला तो उन्होंने उदयसिंह का साथ दिया और उन्होंने बनबीर को हरा दिया। यह राणा उदयसिंह ने उदयपुर की स्थापना की और वो वीर योद्धा महाराणा प्रताप के पिताश्री थे।

पन्ना धाय की महानता

पन्ना धाय का बलिदान इतिहास में अमर है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि मातृभूमि और स्वामीभक्ति के लिए अपना पुत्र बलिदान कर देना ही सच्ची निष्ठा है।उनका यह त्याग केवल मेवाड़ ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष की धरोहर है। पन्ना धाय ने यह संदेश दिया कि राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए व्यक्तिगत संबंधों का त्याग भी छोटा है।

निष्कर्ष

पन्ना धाय का बलिदान भारतीय इतिहास की सबसे हृदयप्शी प्रेरणादायक घटनाओं में से एक है। उनका त्याग हमें यह सिखाता है कि मातृभूमि और कर्तव्य से बढ़कर कुछ भी नहीं होता।

आज भी मेवाड़ की धरती पर पन्ना धाय का नाम श्रद्धा और गौरव से लिया जाता है। वे केवल मेवाड़ की ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत की त्यागमूर्ति और राष्ट्रमाता हैं।



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